बोलना एक कला है। बोली का मूल्य असीम है। इस कला से मूर्ख की मूर्खता तथा विद्वता का स्वत: पता चल जाता है। ‘‘बात करन की रीति में, है अंत...
बोलना एक कला है। बोली का मूल्य असीम है। इस कला से मूर्ख की मूर्खता तथा विद्वता का स्वत: पता चल जाता है।
‘‘बात करन की रीति में, है अंतर अधिकाय।
एक वचन से रिस बढ़ै, एक वचन ते जाय।।’’
वाणी की मधुरता जीवन का आनंद है। उसकी मिठास से हर किसी का दिल जीता जा सकता है। हमारी उपलब्धियां या सफलताएं वाणी पर निर्भर करती हैं। शिक्षित होने के साथ-साथ हमारी बोलचाल में शालीनता एवं उदारता होनी चाहिए।
हमें अपनी वाणी पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि गलत शब्द के प्रयोग से मधुर संबंध भी शत्रुता में बदल जाते हैं। शब्दों में ज्ञान, सत्य तथा मधुरता का समावेश होना चाहिए। इससे विचारों की महत्ता कई गुणा बढ़ जाती है।
शब्दों की गति प्रकाश से भी तीव्र होती है। मुख से निकले शब्द समुचे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर लेते हैं तथा तरंगों के रुप में वातावरण में ओत-प्रोत हो जाते हैं और उनका प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है। हमारे द्वारा प्रयोग किये गये शब्दों से ही हमारी आत्मा के स्वरुप, पूर्ण जन्मों के संस्कार, मन तथा कर्म का प्रतिविम्ब झलकता है। मन तथा कर्म की पवित्रता से ही वचन में श्रेष्ठता आती है। प्रत्येक बात हृदय रुपी तराजू पर तोल अर्थात खूब सोच समझ कर ही बोलनी चाहिए क्योंकि विनम्रता ही वाणी का श्रंगार है।
ईश्वर ने हमें जो वाणी रुपी रत्न उपहार स्वरुप दिया है, उसका हमेशा सदुपयोग करना चाहिए। शब्दों का दुरुपयोग करने से वाक ज्योति धीरे-धीरे मंद होकर अंत में बुझ जाती है।
-चारु त्यागी
‘‘बात करन की रीति में, है अंतर अधिकाय।
एक वचन से रिस बढ़ै, एक वचन ते जाय।।’’
वाणी की मधुरता जीवन का आनंद है। उसकी मिठास से हर किसी का दिल जीता जा सकता है। हमारी उपलब्धियां या सफलताएं वाणी पर निर्भर करती हैं। शिक्षित होने के साथ-साथ हमारी बोलचाल में शालीनता एवं उदारता होनी चाहिए।
हमें अपनी वाणी पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि गलत शब्द के प्रयोग से मधुर संबंध भी शत्रुता में बदल जाते हैं। शब्दों में ज्ञान, सत्य तथा मधुरता का समावेश होना चाहिए। इससे विचारों की महत्ता कई गुणा बढ़ जाती है।
शब्दों की गति प्रकाश से भी तीव्र होती है। मुख से निकले शब्द समुचे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर लेते हैं तथा तरंगों के रुप में वातावरण में ओत-प्रोत हो जाते हैं और उनका प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है। हमारे द्वारा प्रयोग किये गये शब्दों से ही हमारी आत्मा के स्वरुप, पूर्ण जन्मों के संस्कार, मन तथा कर्म का प्रतिविम्ब झलकता है। मन तथा कर्म की पवित्रता से ही वचन में श्रेष्ठता आती है। प्रत्येक बात हृदय रुपी तराजू पर तोल अर्थात खूब सोच समझ कर ही बोलनी चाहिए क्योंकि विनम्रता ही वाणी का श्रंगार है।
ईश्वर ने हमें जो वाणी रुपी रत्न उपहार स्वरुप दिया है, उसका हमेशा सदुपयोग करना चाहिए। शब्दों का दुरुपयोग करने से वाक ज्योति धीरे-धीरे मंद होकर अंत में बुझ जाती है।
-चारु त्यागी