न उठने का वक्त, न सोने का। आदमी की परेशानी जायज है। इस कारण जिंदगी खस्ताहाल हो गयी है। दिनभर सुस्ती और चिड़चिड़ापन बना रहता है। ऐसा ल...
न उठने का वक्त, न सोने का। आदमी की परेशानी जायज है। इस कारण जिंदगी खस्ताहाल हो गयी है। दिनभर सुस्ती और चिड़चिड़ापन बना रहता है। ऐसा लगता है जैसे कितना बोझ सिर पर लिए घूम रहे हैं। हंसने का मन नहीं करता। चेहरे की रौनक गायब होती जा रही है। चिकित्सकों के पास जाकर आदमी परेशान है। हल नहीं मिल पा रहा।
कारण ढूंढने मेरा मित्र और मैं निकल पड़े। हम हैरान रह गये जब पता लगा कि इलाज तो खुद आदमी के पास है। पता नहीं क्यों लोग इधर-उधर धूल फांकने निकले हुए हैं।
उस आदमी को हमने खोजा जिसकी यह शिकायत बार-बार आ रही थी कि वह अपनी जिंदगी से बोर होता जा रहा है। नीरसता और अधूरेपन ने उसे घेर लिया था तथा वह अब जिंदगी से पूरी तरह निराश हो चुका था।
आदमी की समस्या को काफी हद तक उसने स्वयं दूर किया। हमने केवल उसे अपने भीतर खोज करने की कला समझा दी। उसने हमारा आभार प्रकट किया।
उसे हमने तीन बातें समझायीं :
- समय से उठिये और समय से जगिये
- व्यायाम नियम से कीजिये
- आज की बात कल पर मत टालिये
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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