बुराई ने जीवन को बदलाव के पैमाने पर परखा है। इसमें इंसान की परख हुई है। वह खुद को बदलता रहा है। समय के साथ यह घटित हुआ है। जीवन को उसने जि...
बुराई ने जीवन को बदलाव के पैमाने पर परखा है। इसमें इंसान की परख हुई है। वह खुद को बदलता रहा है। समय के साथ यह घटित हुआ है। जीवन को उसने जिया जरुर है लेकिन उसने खामियों को भी अपनाया है। अच्छाई के साथ बुराई को भी इंसान साथ लेकर चलता रहा है।
हम जानते हैं कि जिंदगी में अच्छाई और बुराई का वजूद है। यदि आप अच्छे कार्य करते हैं तो लोग आपका सम्मान करते हैं। आपकी जिंदगी पर इसका प्रभाव पड़ता है। अच्छे इंसान कम होते हैं। उसके विपरीत बुरे लोगों की कमी इस संसार में नहीं। जहां देखो वहां बुराई नाच रही है।
किसी ने सच ही कहा है -‘जीवन में दो तरह के लोग आसानी से मिल जाते हैं। एक अच्छे और दूसरे बुरे। इनमें बुरे लोगों की संख्या अधिक है क्योंकि बुराई आसानी से फैलती है।’
सफेद कपड़े पर गंदगी का एक छींटा भी दूर से दिख जाता है। काले वस्त्र पर भी सफेद छींटा आसानी से दिख जाता है। इसे समझना आसान लगता है, लेकिन इसकी गहराई तक जाने पर यह भी जानने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में बुराई और अच्छाई मिलकर चलती है।
अच्छाई और बुराई साथ चलती है। दोनों का घनिष्ठ संबंध है। यदि संबंध न होता तो दोनों को जोड़कर क्यों देखा जाता? क्या दोनों इतने जुड़े हैं कि आपस में अलग नहीं किया जा सकता? क्या बुरा अच्छे से बेहतर है या अच्छा बुरे से श्रेष्ठ?
कई रंगों को एक साथ मिलाने पर काला रंग भी बन सकता है। यानि उसमें जीवन के कई रुप समाहित हो गये। अब वहां कोई दूसरा रुप नहीं रहा। सब एक हो गये। मतलब सबको एक रंग में समा दिया गया। कहने को रंगों का यह मिलन महत्व नहीं रखता लेकिन उनमें एक भावना भर गयी। वे स्वयं की पहचान और अस्तित्व से दूर होकर एक हो गये तथा नये रंग की रचना कर दी। वह रंग काला है।
काले रंग पर एक सफेद रंग का छींटा मारने पर काला रंग भी नये रुप में दिख रहा है। सफेद तो खैर दूर से चमक ही रहा है। जिंदगी की समझ को यकीन में बदलने के लिए स्वयं को समझना होगा। उस परदे को हटाना होगा जो चाहे-अनचाहे हमारी आंखों के सामने सहसा उभर आया है।
कंटीले तारों में उलझी लटाओं की तरह हमारा जीवन भी है। स्वयं को ऐसी अवस्था में लाने के लिए जो जीवन के मायने हमें समझा पाये, उसके लिए हम बुरे विचारों को मन से बाहर करते रहें। वे आते रहेंगे, निरंतर उनका आना-जाना जारी रहेगा। उनसे दूरी बनाने की जिद हमें पालनी होगी। तब भी तुरंत न रुक पायें, मगर हमारे प्रयास जारी रहने चाहिएं। तभी संभव है अच्छाई और बुराई का फर्क हम समझ पायें। यह सहर्ष नहीं होता, प्रयास बहुत होते हैं, और हम करते रहेंगे।
एक दिन हम समझ भी जायेंगे कि अच्छा और बुरा क्या है। तब हम जिंदगी से आरी से बुराई की फसल को काटने में सफल भी हो जायेंगे। यह जीवन की जीत होगी। इंसान की विजय होगी। जीवन का उत्सव होगा और खुशी के फूल हमारे चारों और खिलखिला उठेंगे।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
Saw of Life.